Saturday, October 12, 2013

SHRI DURGA STUTI ( 13 )

ऋषिराज कहने लगे मन में अति हर्षाए
तुम्हे महातम देवी का मैंने दिया सुनाए
आदि भवानी का बड़ा है जग में प्रभाओ
तुम भी मिल कर वैश्य से देवी के गुण गाओ

शरण में पड़ो तुम भी जगदम्बे की
करो श्रद्धा से भक्ति माँ अम्बे की
यह मोह ममता सारी मिटा देवेगी
सभी आस तुम्हारी पूजा देवेगी

तुझे ज्ञान भक्ति से भर देवेगी
तेरे काम पुरे यह कर देवेगी
सभी आसरे छोड़ गुण गाइयो
भवानी की ही शरण में आइओ

स्वर्ग मुक्ति भक्ति को पाओगे तुम
जो जगदम्बे को ही ध्याओगे तुम

दोहा:-
चले राजा और वैश्य यह सुनकर सब उपदेश
आराधना करने लगे बन में सहे क्लेश
मारकंडे बोले तभी सुरत कियो ताप घोर
राज तपस्या का मचा चहु और से शोर

नदी किनारे वैश्य ने डेरा लिया लगा
पूजने लगे वह मिटटी की प्रीतिमा शक्ति बना
कुछ दिन खा फल को किया तभी निराहार
पूजा करते ही दिए तीन वर्ष गुजार

हवन कुंड में लहू को डाला काट शरीर
रहे शक्ति के ध्यान में हो आर अति गंभीर
हुई चंडी प्रसन्न दर्शन दिखाया
महा दुर्गा ने वचन मुह से सुनाया

मै प्रसन्न हु मांगो वरदान कोई
जो मांगोगे पाओगे तुम मुझ से सोई
कहा राजा ने मुझ को तो राज चाहिए
मुझे अपना वही तख़्त ताज चाहिए

मुझे जीतने कोई शत्रु ना पाए
कोई वैरी माँ मेरे सन्मुख ना आये
कहा वैश्य ने मुझ को तो ज्ञान चाहिए
मुझे इस जन्म में ही कल्याण चाहिए

दोहा:-
जगदम्बे बोली तभी राजन भोगो राज
कुछ दिन ठहर के पहनोगे अपना ही तुम ताज
सूर्य से लेकर जन्म स्वर्ण होगा तव नाम
राज करोगे कल्प भर , ऐ राजन सुखधाम

वैश्य तुम्हे मै देती हु, ज्ञान का वह भंडार
जिसके पाने से ही तुम होगे भव से पार
इतना कहकर भगवती हो गई अंतरध्यान
दोनों भक्तो का किया दाती ने कल्याण

नव दुर्गा के पाठ का तेरहवां यह अध्याय
जगदम्बे की कृपा से भाषा लिखा बनाये
माता की अदभुत कथा 'चमन' जो पढ़े पढाये
सिंह वाहिनी दुर्गा से मन वांछित फल पाए


ब्रह्मा विष्णु शिव सभी धरे दाती का ध्यान
शक्ति से शक्ति का ये मांगे सब वरदान
अम्बे आध भवानी का यश गावे संसार
अष्टभुजी माँ अम्बिके भरती सदा भंडार

दुर्गा स्तुति पाठ से पूजे सब की आस
सप्तशती का टीका जो पढ़े मान विश्वास
अंग संग दाती फिरे रक्षा करे हमेश
दुर्गा स्तुति पढने से मिटते 'चमन' क्लेश

SHRI DURGA STUTI ( 12 )

द्वादश अध्याय में है माँ का आशीर्वाद
सुनो राजा तुम मन लगा देवी देव संवाद

महालक्ष्मी बोली तभी करे जो मेरा ध्यान
निशदिन मेरे नामो का जो करता है गान

बाधाये उसकी सभी करती हु मै दूर
उसके ग्रह सुख सम्पति भर्ती हु भरपूर

अष्टमी नवमी चतुर्दर्शी करके एकाग्रचित
मन कर्म वाणी से करे पाठ जो मेरा नित

उसके पाप व् पापो से उत्पन्न हुए क्लेश
दुःख दरिद्रता सभी मै करती दूर हमेश

प्रियजनों से होगा ना उसका कभी वियोग
उसके हर एक काम में दूँगी मै सहयोग

शत्रु, डाकू, राजा और शस्त्र से बच जाये
जल में वह डूबे नहीं न ही अग्नि जलाए

भक्ति पूर्वक पाठ जो पढ़े या सुने सुनाये
महामारी बिमारी का कष्ट ना कोई आये

जिस घर में होता रहे मेरे पाठ का जाप
उस घर की रक्षा करू मेट सभी संताप

ज्ञान चाहे अज्ञान से जपे जो मेरा नाम
हो प्रसन्न उस जीव के करू मै पुरे काम

नवरात्रों में जो पढ़े पाठ मेरा मन लाये
बिना यत्न कीने सभी मनवांछित फल पाए

पुत्र पौत्र धन धाम से करू उसे सम्पन्न
सरल भाषा का पाठ जो पढ़े लगा कर मन

बुरे स्वप्न ग्रह दशा से दूँगी उसे बचा
पढ़ेगा दुर्गा पाठ जो श्रधा प्रेम बढ़ा

भुत प्रेत पिशाचिनी उसके निकट ना आये
अपने द्रढ़ विश्वास से पाठ जो मेरा गाए

निर्जन वन सिंह व्याघ से जान बचाऊ आन
राज्य आज्ञा से भी ना होने दू नुक्सान

भवर से भी बाहर करू लम्बी भुजा पसार
'चमन' जो दुर्गा पाठ पढ़ करेगा प्रेम पुकार

संसारी विपत्तिय देती हु मै टाल
जिसको दुर्गा पाठ का रहता सदा ख्याल

मै ही रिद्धि -सीधी हु महाकाली विकराल
मै ही भगवती चंडिका शक्ति शिवा विशाल

भैरो हनुमत मुख्य गण है मेरे बलवान
दुर्गा पाठी पे सदा करते क्रपा महान

इतना कह कर देवी तो हो गई अंतरध्यान
सभी देवता प्रेम से करने लगे गुणगान

पूजन करे भवानी का मुह माँगा फल पाए
'चमन' जो दुर्गा पाठ को नित श्रधा से गाए

वरदाती का हर समय खुला रहे भंडार
इच्छित फल पाए 'चमन' जो भी करे पुकार

इक्कीस दिन इस पाठ को कर ले नियम बनाये
हो विश्वास अटल तो वाकया सिद्ध हो जाये

पन्द्रह दिन इस पाठ में लग जाये जो ध्यान
आने वाली बात को आप ही जाए जान

नौ दिन श्रधा से करे नव दुर्गा का पाठ
नवनिधि सुख सम्पति रहे वो शाही ठाठ

सात दिनों के पाठ से बलबुद्धि बढ़ जाये
तीन दिनों का पाठ ही सारे पाप मिटाए

मंगल के दिन माता के मन्दिर करे ध्यान
'चमन' जैसी मन भावना वैसा हो कल्याण

शुद्धि और सच्चाई हो मन में कपट ना आये
तज कर सभी अभिमान न किसी का मन कलपाये

सब का कल्याण जो मांगेगा दिन रैन
काल कर्म को परख कर करे कष्ट को सहन

रखे दर्शन के लिए निस दिन प्यासे नैन
भाग्यशाली इस पाठ से पाए सच्चा चैन

द्वादश यह अध्याय है मुक्ति का दातार
'चमन' जीव हो निडर उतरे भव से पार

बोलो जय माता दी
जय मेरी माँ वैष्णो रानी की
जय मेरी माँ राज रानी की
जय जय माँ , मेरी भोली माँ
जय जय माँ, मेरी प्यारी माँ.

SHRI DURGA STUTI ( 11 )

ऋषिराज कहने लगे सुनो ऐ पृथ्वी नरेश
महा असुर संहार से मिट गए सभी कलेश
इन्दर आदि सभी देवता टली मुसीबत जान
हाथ जोड़कर अम्बे का करने लगे गुणगान

तू रखवाली माँ शरणागत की करे
तू भक्तो के संकट भवानी हरे
तू विशवेश्वरी बन के है पालती
शिवा बम के दुःख सिर से है टालती

तू काली बचाए महाकाल से
तू चंडी करे रक्षा जंजाल से
तू ब्रह्माणी बन रोग देवे मिटा
तू तेजोमयी तेज देती बढ़ा

तू माँ बनके करती हमे प्यार है
तू जगदम्बे बन भरती भंडार है
कृपा से तेरी मिलते आराम है
हे माता तुम्हे लाखो प्रणाम है

तू त्रयनेत्र वाली तू नारायणी
तू अम्बे महाकाली जगतारानी
गुने से है पूर्ण मिटाती है दुःख
तू दसो को अपने पहुचाती है सुख

चढ़ी हंस वीणा बजाती है तू
तभी तो ब्रह्माणी कहलाती है तू
वाराही का रूप तुमने बनाया
बनी वैष्णवी और सुदर्शन चलाया

तू नरसिंह बन दैत्य संहारती
तू ही वेदवाणी तू ही स्मृति
कई रूप तेरे कई नाम है
हे माता तुम्हे लाखो प्रणाम है

तू ही लक्ष्मी श्रधा लज्जा कहावे
तू काली बनी रूप चंडी बनावे
तू मेघा सरस्वती तू शक्ति निंद्रा
तू सर्वेश्वरी दुर्गा तू मात इन्द्रा

तू ही नैना देवी तू ही मात ज्वाला
तू ही चिंतपूर्णी तू ही देवी बाला
चमक दामिनी में है शक्ति तुम्हारी
तू ही पर्वतों वाली माता महतारी

तू ही अष्टभुजी माता दुर्गा भवानी
तेरी माया मैया किसी ने ना जानी
तेरे नाम नव दुर्गा सुखधाम है
हे माता तुम्हे लाखो प्रणाम है

तुम्हारा ही यश वेदों ने गाया है
तुझे भक्तो ने भक्ति से पाया है
तेरा नाम लेने से टलती बलाए
तेरे नाम दासो के संकट मिटाए

तू महामाया है पापो को हरने वाली
तू उद्धार पतितो का है करने वाली

दोहा:-
स्तुति देवो की सुनी माता हुई कृपाल
हो प्रसन्न कहने लगी दाती दीन दयाल
सदा दासो का करती कल्याण हु
मै खुश हो के देती यह वरदान हु

जभी पैदा होंगे असुर पृथ्वी पर
तभी उनको मारूंगी मै आन कर
मै दुष्टों के लहू का लगूंगी भोग
तभी रक्तदन्ता कहेंगे यह लोग

बिना गर्भ अवतार धारुंगी मै
तो शत आक्षी बन निहारूंगी मै
बिना वर्षा के अन्न उप्जाउंगी
अपार अपनी शक्ति मै दिखलाऊंगी

हिमालय गुफा में मेरा वास होगा
यह संसार सारा मेरा दास होगा
मै कलियुग में लाखो फिरू रूप धारी
मेरी योग्निया बनेगी बीमारी

जो दुष्टों के रक्तो को पिया करेगी
यह कर्मो का भुगतान किया करेगी

दोहा:-
'चमन' जो सच्चे प्रेम से शरण हमारी आये
उसके सरे कष्ट मै दूँगी आप मिटाए
प्रेम से दुर्गा पाठ को करेगा जो प्राणी
उसकी रक्षा सदा ही करेगी महारानी

बढेगा चौदह भवन में उस प्राणी का मान
'चमन' जो दुर्गा पाठ की शक्ति जाये जान
एकादश अध्याय में स्तुति देवं कीन
अष्टभुजी माँ दुर्गा ने सब विपता हर लीन

भाव सहित इसको पढो जो चाहे कल्याण
मुह माँगा देती 'चमन' है दाती वरदान

बोलिए जय माता दी जी
जैकारा शेरावाली माई दा
बोल सांचे दरबार की जय
जय माँ वैष्णो रानी की
जय माँ राज रानी की

SHRI DURGA STUTI ( 10 )

ऋषिराज कहने लगे मारा गया निशुम्भ
क्रोध भरा अभिमान से बोला भाई शुम्भ

आरी चतुर दुर्गा तुझे लाज जरा ना आये
करती है अभिमान तू बल औरो का पाए

जगदाती बोली तभी दुष्ट तेरा अभिमान
मेरी शक्ति को भला सके कहाँ पहचान

मेरा ही त्रिलोक में है सारा विस्तार
मैंने ही उपजाया है यह सारा संसार

चंडी काली , ऐन्द्री, सब ही मेरा रूप
एक हु मै अम्बिका मेरे सभी स्वरूप

मै ही अपने रूपों में एक जान हु
अकेली महा शक्ति बलवान हु

चढ़ी सिंह पर दाती ललकारती
भयानक अति रूप थी धारती

बढ़ा शुम्भ आगे गरजता हुआ
गदा को घुमाता तरजता हुआ

तमाशा लगे देखने देवता
अकेला असुर राज था लड़ रहा

अकेली थी दुर्गा इधर लड़ रही
वह हर वर पर आगे थी बढ़ रही

असुर ने चलाये हजारो ही तीर
जरा भी हुई ना वह मैया अधीर

तभी शुम्भ ने हाथ मुगदर उठाया
असुर माया कर दुर्गा पर वह चलाया

तो चक्र से काटा भवानी ने वो
गिरा धरती पे हो के वह टुकड़े दो

उड़ा शुम्भ आकाश में आ गया
वह उपर से प्रहार करने लगा

तभी की भवानी ने उपर निगाह
तो मस्तक का नेत्र वाही खुल गया

हुई ज्वाला उत्पन्न बनी चंडी वो
उडी वायु मै देख पाखंडी को

फिर आकाश में युद्ध भयंकर हुआ
वहा चंडी से शुम्भ लड़ता रहा

दोहा:-
मारा रन चंडी ने तब थप्पड़ एक महान
हुआ मूर्छित धरती पे गिरा शुम्भ बलवान
जल्दी उठकर हो खड़ा किया घोर संग्राम
दैत्य के उस पराक्रम से कांपे देव तमाम

बढ़ा क्रोध में अपना मुह खोल कर
गरज कर भयानक शब्द बोल कर

लगा कहने कच्चा चबा जाऊंगा
निशां आज तेरा मिटा जाऊंगा

क्या सन्मुख मेरे तेरी औकात है
तरस करता हु नारी की जात है

मगर तुने सैना मिटाई मेरी
अग्न क्रोध तुने बढाई मेरी

मेरे हाथो से बचने न पाओगी
मेरे पावों के नीचे पिस जाओगी

यह कहता हुआ दैत्य आगे बढ़ा
भवानी को यह देख गुस्सा चढ़ा

चलाया वो त्रिशूल ललकार कर
गिरा कट के सिर दिया का धरती पर

किया दुष्ट असुरो का माँ ने संहार
सभी देवताओ ने किया जय जय कार

ख़ुशी से वे गंधर्व गाने लगे
नृत्य करके माँ को रिझाने लगे

'चमन' चरणों में सिर झुकाते रहे
वे वरदान मैया से पाते रहे

यही पाठ है दसवे अध्याय का
जो प्रीति से पढ़ श्रधा से गाएगा

वह जगदम्बे की भक्ति पा जायेगा
शरण में जो मैया की आ जायेगा

दोहा:-
आध भवानी की कृपा, मनो कामना पाए
'चमन' जो दुर्गा पाठ को पढ़े सुने और गाए
कालिकाल विकराल में जो चाहो कल्याण
श्री दुर्गा स्तुति का करो पाठ 'चमन' दिन रैन
कृपा से आद भवानी की मिलेगा सच्चा चैन

बोलिए जय माता दी
जय माँ वैष्णो रानी की
जय माँ राज रानी की
जय जय जय

SHRI DURGA STUTI ( 9 )

राजा बोला ऐ ऋषि महिमा सुनी अपार
रक्तबीज को युद्ध में चंडी दिया संहार
कहो ऋषिवर अब मुझे शुम्भ निशुम्भ का हाल
जगदम्बे के हाथो से आया कैसे काल

ऋषिराज कहने लगे राजन सुन मन लाये
दुर्गा पाठ का कहता हु अब मै नवम अध्याय

रक्तबीज को जब शक्ति ने रण में मारा
चला युद्ध करने निशुम्ब ले कटक अपारा
तभी चढ़ा महाकाली को भी क्रोध घनेरा
महा पराक्रमी शुम्भ लिए सैना को आया
गदा उठा कर महा चंडी को मारण धाया

देवी और दैत्यों के तीर लगे फिर चलने
बड़े बड़े बलवान लगे मिटटी में मिलने
रण में लगी चमकाने वो तीखी तलवारे
चारो तरफ लगी होने भयंकर ललकारे

दैत्य लगा रण भूमि में माया दिखलाने
क्षण भर में वह योद्धा सारे मार गिराए
शुम्भ ने अपनी गदा घुमा देवी पर डाली
काली ने तीखी त्रिशूल से काट वह डाली

सिंह चढ़ी अम्बा ने कर प्रलय दिखलाई
चंडी के खंडे ने हा हा कार मचाई
भर भर खप्पर दैत्यों का लहू पी गई काली
पृथ्वी और आकाश में छाई खून की लाली

अष्टभुजी ने शुम्भ के सिने मारा भाला
दैत्य को मूर्छित करके उसे पृथ्वी पर डाला
शुम्भ गिरा तो चला निशुम्भ भरा मन क्रोधा
अठ्ठास कर गरजा वह बलशाली योद्धा

अष्टभुजी ने दैत्य की मारा छाती तीर
हुआ प्रगट फिर दूसरा छाती से बलबीर

दोहा:-
बढ़ा वह दुर्गा की तरह हाथ लिए हथियार
खड्ग लिए चंडी बढ़ी किये दैत्य संहार
शिवदूती ने खा लिए सैना के सब वीर
कौमारी छोड़े तभी धनुष से लाखो तीर

ब्रेह्मानी ने मन्त्र पढ़ फैंका उन पर नीर
भस्म हुई सैना सभी देवं बांधा धीर
सैना सहित निशुम्भ का हुआ रण मे संहार
त्रिलोकी में मच गया माँ का जय जय कार

'चमन' नवम अध्याय की कथा कही सुखसार
पाठ मात्र से मिटे भीषम कष्ट अपार

बोलो मेरी माँ वैष्णो रानी की जय
बोलो मेरी माँ राज रानी की जय
जय माता दी जी
जय माता दी जी